जागती काली रात...सुबह से रूठी हुई...कुछ उजाले से साथ छूटने का गम...तो तन्हाई के तानों की बेचैनी....इसे कोई खुश कर सकता है...तो दूर पुराने पेड़ तर बैठा वो उल्लू... जो पूरा दिन इसी अंधेरे का इंतजार करता है....असल में यहां हर डाल पर एक उल्लू बैठा है....जिसे काली रात का इंतजार रहता है....देश की राजनीति की डाल पर पाखंड का उल्लू....आर्थिक जगत की टहनी पर निजीकरण का उल्लू...या कला व संस्कृति के गिरेबान पर बैठा पॉपलुर कल्चर का उल्लू....इन सभी उल्लुओं की ख़ास बात ये है कि...इन्हें सिर्फ रात में ही दिखता है...और जंगल की हर डाल पर इनका कब्जा है...सत्ता के गलियारे के चबुतरे पर जो पाखंड का उल्लू है..वो सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप की भाषा बोलता है सरोकारों से उसका कोई लेना-देना नहीं...मजेदार बात ये है कि दिन के उजाले और आकाओं की सफेद पोशाक में ये उल्लू महाशय धराशाही हो जाते है...फिर रात के अंधेरे या ये कहे जनता की आंख पर जब लुभावने वादों की पट्टी बांध दी जाती है तब भी इन महाराज की आंखे बहुत तेज देखती है....शुरू होता है दौर लफ्फाजी का....झूठे दावों और वादों का.....आर्थिक जगत के उल्लू की बात तो और भी लाजवाब है...इनका तो एक ही उद्देश्य है कि...सारे दुनयावी प्रोडक्टस उठाओं और उन पर निजीकरण का लेबल लगा दो....ये उल्लू महाराज सराकारी दफ्तर के सामने वाले पेड़ पर ही बैठना पसंद करते है....जब मन आया सरकारी बाबू को खीच के लगा दी एक चपत...बाबू जी इनके तलवे चाटते है...आखिर चुनाव में वोट का जो सवाल है...अरे इन रतिया महाराज का बस चले तो सरकारी दफ्तर पर भी अपनी पाटनरशिप का लेबल चस्पा कर दे....आखिर में बात अगर पपलू बाबुआ की करे तो...इनकी लीला सबसे अपरमपार है...इन्होने तो कला के गले में हाथ डाल के उसकी आत्मा निकालने की ठान ली है...इनकी दीवानगी का चरम ही है कि...जो डिस्को थेक में पूरी रात नचाता है....और हां ये हर कलाकार के घर के सामने वाले पेड़ को हथियाये बैठे है...कब मौका मिले और उतार दे नशा कलाकार सत्तू लाल का...क्योकि अब तो बाजा सैट का बजेगा...कुल मिलाकर इस नये जमाने में राज तो अब उल्लू महाराज का ही चलेगा.....आखिर हर डाल पर इनका कब्जा जो हैं......
अपर्णा (5:28)
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आपकी चिन्ता जायज है अपर्णा जी।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
achchhi post hai.badhai.
ReplyDeleteसार्थक सो़च में उपजा लेख
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
achha laga !! likhte rahie....
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