मैं जब रोना चाहती हूं पर रो नहीं पाती,
मेरे उदास चेहरे...कॉपते होठों...बरौनियों के पर्दे से झॉकते आसुओं को तुम देख लेती हो न...
मेरे दिल से उठी उमंगों के उफान को
जब मैं अभिव्यक्तिहीनता के बांध से रोक देती हूं..
तुम उसे अपने दिल में महसूस करती हो न...
अपनी गलती को जब मैं अपने चेहरे के बनावटी भावों से नकार देती हूं...
तुम उसे पहचान कर माफ कर देती हो न...
तुम सब जानती हो न मॉ....
अपर्णा(12:51)
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जी हाँ माँ सब कुछ जानती है
ReplyDeleteखूबसूरत रचना
हाँ... बच्चे ...माँ सबकुछ जानती है..!!
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