आज मन कुछ ठीक नहीं
अपने घर के बाहर वाला नीम का पेड़ याद आ रहा है...
बड़ा गहरा रिश्ता रहा हमारा
मां की छड़ी से उसने मुझे कई बार बचाया
उसकी डालों ने मेरा भारी वज़न उठाया
अनीता मेरे बचपन की सहेली रोज शाम मुझसे वहीं मिलने आती
बाते करती जाती औऱ नाखूनों से पेड़ को कुरेदती थी..
बहरा बुआ को जब खुजली हुई तो उसी पेड़ के नीचे नीम की पत्ती तुड़वाने आती थी
चबूतरे पर बैठती...खैनी पीटती और मुहल्ले भर को गरियाती थी
गंगा चरण चाचा का लड़का मदन एक बार मुझसे वहीं भिड़ गया
मार कर भागा और चबूतरे पर ही गिर गया
दीपावली मे हम उस पेड़ के नीचे घरोनदा बनाते थे
पहले गोबर से लीपते फिर उसमे दिया जलाते थे
इस बार घर गयी तो वो पेड़ कट चुका था
चबूतरे पर देखा
तो एक नाखून...बुआ की खैनी...दिए का टुकड़ा और मेरा बचपन पड़ा था...
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nice poem.
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
भावुक कर देने वाली रचना. दिल को छू गयी.
ReplyDeleteबेहतरीन
बहुत सुन्दर रचना है बधाई।
ReplyDeleteसच कहूं तो गाँव में मेरे घर के आगे वाली चौपाल पर भी एक नीम का पेड़ था (था का मुझे दुःख होता है कभी-kabhi जब भी सोचता hun) उसकी यादें आपने ताजा करा दीं. शुक्रिया. जारी रहें.
ReplyDelete----
१५ अगस्त के महा पर्व पर लिखिए एक चिट्ठी देश के नाम [उल्टा तीर]
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aap z24 mein hain- bahut khushee ho- aaap aur bhi mukaam paayen- shubhkaamnayen.
ReplyDeletebahut hi sundar yado se sajji hai kawita
ReplyDeleteBachpan sacmuch kitna masum hota hai...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी,दिल को छु लेने वाली कविता, जितनी बार पढ़ों उतनी बार अच्छी लगती है,एक नए सिरे से........
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