Saturday, August 8, 2009

उम्मीद नहीं किस्मत

दरअसल अपनी हार या गलती स्वीकारने का सामर्थ्य हममे नहीं होता...यहीं वज़ह है कि हम हार को भी महिमामंडित करते है...मैं यहां नैराश्यवाद की तरफदारी कतई नहीं कर रही...बस सच्चाई से अवगत कराना चाहती हूं...और साफ तौर पर यह कह देना चाहती हूं कि सच्चाई का सिर्फ सामना होना चाहिए...महिमामंडन नहीं....

गरजते बादल फिर धोखा दे गए..
आस बूंद आसूं सब ले गए...
वहां आंगन में एक बरतन का टुकड़ा अब भी रखा है..
उम्मीद नहीं...किस्मत, तप रहा है.......

अपर्णा(12:05)

2 comments:

  1. बहुत खूब ---
    "उम्मीद नही --- किस्मत तप रहा है --"
    लाजवाब

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  2. अपर्णा जी, चाहें तो यूं कह लीजिये--
    बादलों को, फिर हवा, जाने कहां, लेकर गई
    मैंने फिर उम्मीद बांधी थी घटा छाने के बाद
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
    लिंक
    http://shahidmirza.blogspot.com/

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