Monday, August 17, 2009

क्या मैं आपकों ड्राप कर सकती हूं ?

सोमवार को आफिस की तरफ तेज कदम....रास्तें में पैलोटी कॉलेज के सामने एक लड़की गाड़ी स्टार्ट करते हुए दिखी...सामान्य प्रतिक्रिया देख कर नजर फेर ली...तभी लगभग 1 मिनट बाद...वही गाड़ी मेरे ठीक बगल में रूकी...सफेद नक़ाब के पीछे से बेहद मीठा आग्रह...क्या मैं आपको ड्राप कर सकती हूं...मैं भौचक्क हुई और ठिठक कर जवाब...बिल्कुल...सिर्फ एक मिनट का सफर...उसने मुझे मेन रोड पर छोड़ दिया...रास्ते में सिर्फ नाम और कॉलेज पूछ पाई..नाम श्वेता, कॉलेज पैलोटी...कोर्स बीएड में न्यू एडमीशन...उसके बाद जब चलना शुरू किया... तो लगा मैंने फोन नंबर क्यू नहीं लिया..उसका पता क्यूं नहीं पूछा....इक मिनट का सफर बेचैन कर गया...पहली बार लगा खुद से मुलाकात हुई....लौटते वक्त उस नाकाब पोश से सिर्फ इतना कहां था...तुम्हें बहुत दूर तलक चलना है...सच अंतरआत्मा तक छू गया वो व्यक्ति....असल में वो एक लहर थी जो मुझे भिगो गई...वो एक अहसास था...जो कहीं गहरे पैठ कर गया...पुराने दिन याद आ गए..जब मैं कोचिंग जाती थी औऱ ऐसी ही गाड़ी रोक रोक कर किसी आंटी या बूढे से अंकल या किसी छोटू को लिफ्ट दिया करती थी....ऐसे में जब मैं कभी परेशानी में किसी लड़की को हाथ देती तो कोई गाड़ी नहीं रोकता...गुस्सा आता था लोग ऐसा क्यू करते है...छोटी सी बात क्यूं नहीं समझते...वो अपनी खाली सीट पर किसी जरूरतमंद को जगह दे सकते है...मुझे कई बार लोगों ने ऐसा करते टोका भी...लेकिन मैंने सुनी नहीं मुझे लगा...जो धूप में चल रहा है...उसके लिए ये छोटी सी सहायता बहुत बड़ी है...सच आज जब अपनी जगह उस नकाब पोश को देखा तो...दिल भर आया....पता नहीं क्यूं..उन सबकी जिन्हें कभी लिफ्ट दी थी...याद ताजा हो गई साथ ही एक एहसास...भी हुआ...संतुष्टि का...तृप्ति का ....लगा मैं तब सही थी...ऐसे लोग दुनिया में कम है...लेकिन है...ये समाज की अंगूठी में जड़ा हीरा है...जिनकी चमक कभी हल्की नहीं हो सकती ....और जिन्हें ये समाज पचा भी नहीं सकता...यहीं वज़ह है कि इन्हे या तो लोगों की धूर्तता से बचने की एतियात देकर ऐसा करने से रोका जाता है या पागल कह कर नकार दिया जाता है...बहराल मै तुम्हारे साथ हूं....और तुम्हे जल्दी खोज लूंगी......

अपर्णा (4:45)

4 comments:

  1. अपर्णा जी कभी धोका भी हो जाता है,हा सहायता करनी चाहिये पर देख भाल के

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  2. बेहद संवेदनापूर्ण ........

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  3. मदद करने से ही जरुरत पड़ने पर मदद हासिल होती है।
    और अगर यह मेरे शहर का पैलोटी कॉलेज है तो उसके आगे का रास्ता इन दिनो……धूल ही धूल
    और थोड़ी से बारिश के बाद कीचड़ ही कीचड़।

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  4. Aparana tumahara ye post ek dum lajwab hai....padh kar maja aa gaya..lag raha hai ki screen pe tumahra chehra ubhar aaya aur tum hi bol rahi ho.......bahut accha likha hai tumne....iss tarah lekhte raho.....

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