Saturday, January 12, 2013


आओ लिखे!
मैंने देखा है, तुम कागज़ के कोनों पर कुछ-कुछ लिखती तो हो
कल भी लिख रही थीं, दीवार से सटी
जैसे सबकुछ छुपा लेना चाहती थीं, मैंने कुछ तो देख लिया         
कागज़ पर नहीं तुम्हारी आंखों में, स्याही फैल सी गई है वहां भी
शायद शब्द तुम्हारी आंखों के आईने में खुद को देख कर रो पड़े हैं
काश तुम मुझसे साझा करती
मैं अपने प्रेम के रिमूवर से ठीक कर देता सब
फिर हम साथ मिलकर लिखते 
हर दीवार के कोने पर

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